गुरु नानक देव जी

गुरु नानक देव जी: प्रेम, समानता और सेवा के मार्गदर्शक

गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक थे, जो एकेश्वरवाद, समानता, भाईचारा और सेवा पर बल देने वाला धर्म है। उन्होंने 15वीं शताब्दी में भारत में एक ऐसे समय में जन्म लिया था जब समाज में धार्मिक असहिष्णुता और जाति व्यवस्था का बोलबाला था। गुरु नानक देव जी ने अपने उपदेशों के माध्यम से प्रेम, करुणा और सार्वभौमिक भाईचारे का संदेश फैलाया।

इस ब्लॉग में, हम गुरु नानक देव जी के जीवन, दर्शन और शिक्षाओं का गहन अध्ययन करेंगे। हम देखेंगे कि उन्होंने कैसे एक ऐसे धर्म की नींव रखी जिसने दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित किया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ईस्वी में तलवंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में एक खत्री परिवार में हुआ था। उन्हें बचपन से ही अध्यात्म और दर्शन में गहरी रुचि थी। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम धर्मग्रंथों का अध्ययन किया और विभिन्न धार्मिक गुरुओं से मिले। हालाँकि, वे उस समय के कर्मकांडों और रूढ़ियों से संतुष्ट नहीं थे।

गुरु नानक देव जी एक सच्चे गृहस्थ थे। उन्होंने शादी की, बच्चे पैदा किए और अपने जीवनयापन के लिए मेहनत की। साथ ही, उन्होंने लगातार आत्मिक खोज जारी रखी। एक दिव्य अनुभव के बाद, उन्हें 30 वर्ष की आयु में अपना आध्यात्मिक जागरण हुआ और उन्हें अपना मिशन प्राप्त हुआ – दुनिया को एकेश्वरवाद और मानवता के संदेश का उपदेश देना।

भ्रमण और उपदेश

गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन का अधिकांश भाग यात्रा में बिताया। उन्होंने पश्चिम में मेcca (मक्का) और पूर्व में बंगाल तक की यात्रा की। उन्होंने हिंदू धर्म और इस्लाम के तीर्थ स्थानों का दौरा किया और विभिन्न धर्मों के लोगों से मुलाकात की। उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से लोगों को जाति-व्यवस्था, छुआछूत और धार्मिक कट्टरता जैसी सामाजिक बुराइयों से दूर रहने का आह्वान किया।

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गुरु नानक देव जी के उपदेश सरल और स्पष्ट थे। उन्होंने एक सर्वोच्च ईश्वर की अवधारणा का प्रचार किया जिसे ‘वाਹਿगुरु’ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने सिखाया कि सभी मनुष्य ईश्वर की संतान हैं और इसलिए सभी समान हैं। उन्होंने सेवा (सेवा) और लंगर (समुदायिक रसोई) के महत्व पर बल दिया, जहाँ हर किसी को जाति या धर्म की परवाह किए बिना भोजन दिया जाता था।

मूल मंत्र और तीन स्तंभ

गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का सार मूल मंत्र में निहित है, जो सिख धर्म का सबसे पवित्र मंत्र है। मूल मंत्र इस प्रकार है:

इक ओंकार सतिनाम करता पुरखु निर्भउ निर्वैर अकाल मूरत अजूनी सभं थापै सच्चा सौदा सइबान तेरतु।।

मूल मंत्र ईश्वर के गुणों का वर्णन करता है। यह एकेश्वरवाद (एक ईश्वर), सतनाम (सत्य का नाम), करता पुरख (रचनाकार), निर्भउ (निर्भय), निर्वैर (بغैर द्वेष), अकाल मूरत (अनंत रूप), अजूनी (जन्म-मृत्यु के चक्र से परे), सभं थापै (सब कुछ बनाए रखने वाला), सच्चा सौदा (सच्चा सौदा करने वाला), सइबान (हमारा स्वामी) और तेरतु (आपका) शब्दों का उपयोग करता है। मूल मंत्र सिखों को यह याद दिलाता है कि ईश्वर सर्वव्यापक है, दयालु है, और सभी का रक्षक है।

गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के तीन मुख्य स्तंभ हैं:

  • नाम जपो (Naam Japo): ईश्वर के नाम का जप करना। इसका मतलब है कि हमें हर समय ईश्वर को याद रखना चाहिए और उसके प्रति प्रेम और भक्ति का भाव रखना चाहिए।
  • कीरत करो (Kirat Karo): ईमानदारी से कमाई करना। हमें कड़ी मेहनत करनी चाहिए और ईमानदारी से अपना जीवनयापन करना चाहिए। दूसरों का शोषण करके धन प्राप्त करना गलत है।
  • वांड छक ले (Vand Chakko): कमाई को साझा करना। हमें अपनी कमाई का एक हिस्सा जरूरतमंदों की सेवा में लगाना चाहिए। हमें दान-पुण्य करना चाहिए और गरीबों की मदद करनी चाहिए।

ये तीन स्तंभ एक साथ मिलकर सिख जीवन का आधार बनते हैं। ये हमें एक आध्यात्मिक जीवन जीने और दूसरों की सेवा करने के लिए प्रेरित करते हैं।

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लंगर और संगत का महत्व (Importance of Langar and Sangat)

गुरु नानक देव जी ने सामुदायिक रसोई (लंगर) की अवधारणा शुरू की। लंगर में सभी को भोजन कराया जाता था, चाहे वे किसी भी जाति, धर्म या सामाजिक वर्ग के हों। लंगर ने समानता और भाईचारे को बढ़ावा दिया और लोगों को एक साथ लाने में मदद की।

गुरु नानक देव जी ने संगत (समुदाय) के महत्व पर भी बल दिया। उन्होंने सिखाया कि आध्यात्मिक विकास के लिए संगत में रहना जरूरी है। संगत में रहने से हमें सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और हम एक-दूसरे से सीख सकते हैं।

कर्तव्य और जिम्मेदारी

गुरु नानक देव जी ने सिखाया कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना कर्तव्य (धर्म) और जिम्मेदारी (राज) होता है। धर्म का अर्थ है अपना आध्यात्मिक कर्तव्य पूरा करना, जबकि राज का अर्थ है अपने सामाजिक कर्तव्यों को पूरा करना। हमें अपने परिवार, समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना चाहिए। गुरु नानक देव जी ने गृहस्थ जीवन को त्यागने की वकालत नहीं की। उन्होंने सिखाया कि हम एक गृहस्थ जीवन जी कर भी परम पिता परमात्मा से जुड़ सकते हैं।

गुरु नानक देव जी की विरासत

गुरु नानक देव जी की विरासत आज भी दुनिया भर में प्रासंगिक है। उनकी शिक्षाएं प्रेम, समानता, सेवा, ईमानदारी और कड़ी मेहनत पर जोर देती हैं। ये सिद्धांत हर किसी के लिए सार्थक हैं, चाहे वे किसी भी धर्म या संस्कृति के हों।

सिख धर्म आज दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा धर्म है। दुनिया भर में लाखों लोग गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करते हैं। गुरुद्वारे (सिख मंदिर) पूजा और सामुदायिक सेवा के केंद्र के रूप में कार्य करते हैं। लंगर की परंपरा आज भी जारी है, गुरुद्वारों में जरूरतमंदों को निःस्वार्थ भाव से भोजन कराया जाता है।

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गुरु नानक देव जी ने हमें मानवता के मूल्यों को अपनाने का संदेश दिया। उन्होंने सिखाया कि हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं और इसलिए हमें एक-दूसरे के साथ प्रेम और सम्मान से पेश आना चाहिए। उनकी शिक्षाएं हमें एक शांतिपूर्ण और समृद्ध दुनिया बनाने के लिए प्रेरित करती हैं।

गुरु नानक देव जी के जीवन से हम क्या सीख सकते हैं?

गुरु नानक देव जी एक महान संत और सुधारक थे। उन्होंने दुनिया को प्रेम, समानता और सेवा का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करती हैं। आशा है आपको ये लेख बेहद पसंद आया होगा। अगर आपके पास कोई विचार है जो आप साझा करना चाहते हैं तो आप कमेन्ट बॉक्स मे लिख सकते हैं। धन्यवाद।।

ओम तत्सत ।। ओम गुरु जी ।।

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